किसी के फुसफुसाने से एकाएक नींद टूटी। मैंने आंखें खोली और मोबाइल में टाइम देखा। रात के ढ़ाई बज रहे थे। आवाजें बहुत तेजी से आ रही थी। मैंने खिड़की के बाहर झांका। कोई दिखाई नहीं दिया। लगा घर में चोर घुस आए हैं। टेबल की दराज से टॉर्च निकाली और हल्के से कमरे का दरवाजा खोला। बाहर केवल अंधेरा था। टॉर्च जलाई, एक-एक कर सारे कमरें, बरामदा, छत सब देख लिया। घर में कोई नहीं था सिवाय मेरे। मैं वापस अपने कमरे में आ गई। लाइट बंद की और सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन, फिर वही आवाजें। पर, इस बार आवाज मेरे कबर्ड से आ रही थी।
मैंने कबर्ड पर कान लगाया। ध्यान से सुना। ये क्या? कपड़े बातचीत कर रहे थे! कपड़ों की पंचायत हो रही थी। और सरपंच थी हरी शर्ट, जिन्हें सब हरी बहन कहकर बुला रहे थे। बहरहाल पंचायत शुरू हो चुकी थी। सबसे पहले आया कोट। वह बोला- देखो शर्ट बहनजी, पूरी सर्दियां निकल गई, मजाल है जो मुझे एक बार भी पहना गया हो। अलमारी में रखे-रखे सारा शरीर अकड़ गया। देखिए, आप ही देखिए कितनी सलवटें आ गई हैं मुझ पर। कुछ न हो तो मुझ पर प्रेस करवाकर हैंगर में ही टांग दो।
अलमारी पर कान लगाए मैं सब सुन रही थी। इसके बाद बारी लाल सूट की थी। वह पीले सूट की शिकायत करते हुए बोला- देखिए सरपंच साहिबा, जब से ये पीलू आया है मैडम (यानी कि मैं) ने मुझे पहनना ही बंद कर दिया है। पहले तो इसने आते ही मेरी जगह हथियाई। अब जैसे ही वह मुझे पहनने को होती है ये पीलू अपनी टांग अड़ा देता है। और तो और मंगलवार का दिन भी नहीं छोड़ता। इतने में पीछे से आवाज आई- अरे मियां लालू, गुस्सा काहे होते हो। हम भी तो महीनों से चुपचाप पड़े हैं, तुम्हें भी आदत हो जाएगी। यह मेरा काले सफेद प्रिंट वाला कुर्ता था जिसे मैंने तीन-चार महीनों से नहीं पहना था। इतने में कुर्ता फिर बोला। इस बार वह अपने पड़ोस में बैठी महरून सलवार से कह रहा था। 'अपने दिन भूल गया ये लालू। जब ये आया था तो ऐसी ही शिकायतें लेकर मैं भी गया था सरपंच के पास। तब कुछ नहीं हुआ तो अब क्या होगा।
इतने में किसी की दर्द भरी आह सुनाई दी। वो मेरी चादर थी। सरपंच ने पूछा- क्या हुआ चाची क्यों करहा रही हो। चादर बोली- बिटिया हमें इस मशीन की धुलाई से छुटकारा दिलवाओ तो जिंदगी चैन से कटे। चक्कर घूमते-घूमते इतनी बार मशीन की दीवारों से टकराती हूं कि सारे हाथ-पैर टूट जाते हैं। तपाक से जुराब बोली- चाची बुढ़ापे में बड़ी शिकायती होती जा रही हो। पहले थापी की पिटाई से दर्द होता था। अब मशीन में चक्कर आते हैं। चादर बोली- बिटिया दिन तो पहले ही अच्छे थे। हाथों से रगड़कर आहिस्ता आहिस्ता साफ होती थी। एक एक कोना चमकता था। अब तो...।
तभी तेजी से घंटा बजा और एक जोरदार आवाज। 'सुबह के चार बज चुके हैं। पंचायत का समय खत्म हुआ। अब सभी कपड़े अपनी अपनी जगह जाए। ये कड़क आवाज मेरे पर्पल सूट की थी जिस पर मैंने कल ही स्टार्च लगाया था। खैर पंचायत खत्म हो गई। सब अपनी जगह पहुंच गए। और मैं भी वापस अपने बिस्तर पर। इस प्रण के साथ कि कल सुबह सबसे पहले अपने कपड़ों की शिकायतें दूर करूंगी।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें